यह मेरे लिए अति गर्व एवं सम्मान का विषय है कि मुझे प्रतिष्ठित मेघालय सीमांत को कमान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस सीमांत की स्थापना सन् 1971 में हुई थी (जो कि उत्तर-पूर्व भारत में सीमा सुरक्षा बल का सबसे पुराना सीमांत है) और प्रारम्भ में इस सीमांत को उत्तर-पूर्व भारत के सभी राज्यों की भारत-बंग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। हांलाकि, वर्तमान में यह सीमांत केवल मेघालय राज्य के अन्तर्गत आने वाली भारत-बंग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है। 50 वर्षों का वृत्तांत, मेघालय सीमांत के प्रहरियों की वीरता, अदम्य साहस एवं सर्वोच्च बलिदानों की गाथाओं से भरा हुआ है, जो इस सीमांत के प्रहरियों द्वारा विभिन्न संक्रिय अभियानों जैसे आतंक-विरोधी अभियानों, आंतरिक सुरक्षा अभियानों, 1971 के बंग्लादेश मुक्ति युद्ध एवं अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के अन्य संक्रिय अभियानों के दौरान सीमा प्रहरियों ने तत्परता से देश की सुरक्षा में अपने कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन किया। मैं उन सभी बहादुर शहीदों को नमन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ, जिन्होंने देश की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, मुख्य रूप से उन 09 सीमा प्रहरियों को नमन करता हूँ, जिन्होंने दिनांक 25 मई 1971 को सीमा चौकी किलापारा (वेस्ट गारो हिल्स) मेघालय में मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने अमूल्य प्राणों को न्योछावर कर दिया।
मेघालय सीमांत 444.857 किलोमीटर भारत-बंग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय सीमा को साझा करता है। यह इलाका पहाड़ी एवं पर्वतीय होने के साथ-साथ घने जंगलों से घिरा हुआ है एवं बीच-बीच में बहुत-सी नदियाँ एवं नाले गहरी घाटियों से बहते हुये बंग्लादेश में प्रवेश करते हैं। यहाँ का मौसम गर्म व आर्द्र (नमी) जलवायु, भारी वर्षा, पी.एफ. मलेरिया के खतरे एवं जंगली हाथियों के खतरे (गारो हिल्स एरिया) जैसी बहुत-सी गंभीर समस्याओं से निहित है, जिनसे सुनियोजित ढ़ंग से निपटने के लिए विशेष एवं विभिन्न संसाधनों की आवश्कता है।
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